हिन्दी का प्रवासी साहित्य-एक विहंगम दृष्टि

Main Article Content

डॉ वृंदा विजयन

Abstract

हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ रूपी विशाल वटवृकà¥à¤· के असंखà¥à¤¯ समृदà¥à¤§ à¤à¤µà¤‚ सशकà¥à¤¤ शाखाओं में से à¤à¤• है पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ साहितà¥à¤¯à¥¤ आज पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ साहितà¥à¤¯ दिन- पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ अपनी रचनाधरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ के ज़रिठहिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ को समृदà¥à¤§ बनाता जा रहा है। इस संदरà¥à¤­ में यह कहना अनà¥à¤šà¤¿à¤¤ नहीं होगा कि पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ साहितà¥à¤¯ हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° को सघन बनानेवाली à¤à¤• सशकà¥à¤¤ विधा या नई चेतना है, जो पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ लोगों के मनोविजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से भी संबनà¥à¤§ रखती है। पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ साहितà¥à¤¯ असल में à¤à¤• नई अंतरà¥à¤¦à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¤¿ है, जो परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ समय लगाकर पाठकों के दिल à¤à¤µà¤‚ साहितà¥à¤¯ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में खà¥à¤¦ का à¤à¤• अकà¥à¤·à¥à¤£à¥à¤£ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बनाने में बेहद कामयाब हà¥à¤ˆ है। साहितà¥à¤¯ की यह विधा आज ज़रूर अपनी संवैधानिक रचनाधरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ के ज़रिठबडी गहराई से अपनी जडें जमा चà¥à¤•à¥€ हैं।

Article Details

Section
Articles